एक हसीन सी शाम
हो रहा था मौसम बदनाम
हम भी थे सुरूर में
वो आए बड़े गुरुर में
दोनों ने एक दुसरे को देखा
आलम था मध्होशी का अनोखा
उनकी आँखों में थे हजारो सपने
शायद कह रहे थे- तुम हो अपने
देखकर ये अदा हम तो खामोश हो गए
उन्हें ऐसा लगा कि हम पीकर मदहोश हो गए
इस बात पर वो हो गए नाराज
ऐसा लगा मुझसे छिन गया सरताज
हमने चाहा कुछ कहना
उन्होंने कर दिया अनसुना
उनकी नाराज नजरो के कर दिया घायल मुझे
देखकर उनकी नाराजगी हम हो गए बुझे बुझे
धीरे धीरे शाम ढल रही थी
सामने एक लड़की भेलपुरी खा रही थी
हमने उनको ऑफर कर दी भेलपुरी
सोचा था कह देंगे जो बात रह गई अधूरी
कहने को था हममे शायद बहुत कुछ बाकी
कह गए एक साँस में-तुम ही हो मेरे जीवन कि झांकी
सुन कर वो यकायक खामोश हो गए
सोच रहे थे क्या कहे इस पागल को
बहुत देर में खोकर अपने होश वो कह गए
मत कर इतना प्यार मुझको
कोई और ही आएगा
जो मुझे जीतकर ले जाएगा
Tuesday, February 17, 2009
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3 comments:
अच्छी शुरुआत, स्वागत.
सारी घटना को कविता मे पिरोने का अच्छा प्रयास
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
narayan,narayan
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