Thursday, February 26, 2009

ek missed call.........................

इस कविता को लिखा था 14-04-2005 8:15 AM




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मैं तो हूँ एक बंजारा
रहा भटक कब से यहाँ वहां
करके नाराज एक प्यारे से दोस्त को
खो बैठा हूँ सारा जहाँ
है कितनी नादान वो प्यारी सी लड़की
लगा जैसे दीवार से चिपकी हुई छिपकली
याद नहीं कब वो बन बैठी मेरी जिन्दगी का हिस्सा
उसको लेकर मेरे दोस्त बनाते है रोज नया एक किस्सा
अरे- ये कल परसों की ही तो बात है
उसने कहा-वो नहीं मेरे बच्चो का बाप है
एस बात पैर सबने की उसकी कसकर खिचाई
मासूम सी रूठ कर बैठी है, करवा कर अपनी ही रुसवाई
तोड़ती है रोज एक बाल वो अपने सर का, शायद
बिना बालो के कैसी लगेगी, किसी ने बताया नहीं उसे अब तक
कितनी मासूम है, बस इसी बात की रहती है मुझे चिंता
इसीलिए कर बैठा हेयर पिन की जगह कुछ और देने की खता
इतने गुस्से में उसको मनाना कितना कठिन है
कुछ करो मेरे दोस्तों, लगता है उसका मुस्कराना नामुमकिन है
देख कर मुझे भाग जाती है वो जल्दी जल्दी
लगता है जैसे मैं पूंछ लूँगा उसकी सही उम्र अभी
मेरे दोस्तों-कृपया आप उसे बिलकुल भी तंग मत कीजिये
आखिर वो मेरे बच्चो की अम्मा है, कुछ तो ख्याल कीजिये
लो वो हो गयी है अब बहुत नाराज
लेकिन जानता हूँ-उसका ह्रदय है कितना विशाल
मैं याद करूँ या न करूँ उसे
दिन में एक बार वो जरुर करती है एक missed call
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